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~~प्रकृति के चुंबन ~~ ओ सजना सुनों ना लहर किनारों को सिक्त करतीं बार बार सागर से लहरें क्यों उठतीं हैं यह सब क्यों होता है बोलो ना ओ सजना सुनों ना भंवरे क्यूं गूंजन करते मंडराते फूलों का मधुपान किया करते हैं क्षितिज अनंत तक देखो ना ओ सजना सुनों ना कैसे नभ धरा पर झुकते ठहर वहाँ मेह क्यों बरस पडते हैं साजन श्रृंगों पर मेह दल को देखो ना ओ सजना सुनों ना पात पात की रंगत क्यूं निखरी है किरणों ने हर पात पे देखो अधर धरा है नादान बन यूँ अब देखो ना ओ सजना सुनों ना प्रकृति में सब चुम्बन में डूबे कुछ तो समझो क्या कहते हैं पास अब तो आओ ना ओ सजना सुनों ना R rahii sahityakiran.com